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Nature Cure & Yoga, Aarogyam, Hospital, Nagpura

प्रणेता



श्री उवसग्गहरं पाश्र्व तीर्थ के मार्ग दर्शक प्रतिष्ठाचार्य आध्यात्मिकता के उद्गाता, आत्माद्धार प्रेरक यशस्वी संत मनीषी श्री लब्धि-विक्रम गुरुकृपा पात्र, विद्वान संत मनीषी पूज्यपाद श्रीमद् राजयश सूरीश्वर जी म.सा. आंतरिक विकास के सजग पक्षधर है मंगल मल्लाण आवासं के सतत चिन्तन में पूज्य श्री की प्रेरणा से स्वस्थ मन, स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ आराधना की विहंगम परिकल्पना आज प्राकृतिक चिकित्सा एवं उसमें उत्तरोत्तर अनुसंधान द्वारा मानवीय सेवा का सद्भाविक प्रयास आरोग्यम् के रूप में हस्ताक्षरित है ...

पूज्य श्री की ओजस्वी वाणी में परम शांति एवं परमात्म तत्व का चिंतन दर्शन है ... जीवन निर्माण में आत्मिक स्वस्थता का संदेश मानवीय सेवा का पथ प्रदर्शक है ... इसलिए आत्मा से परमात्मा बनने के मार्ग में सुंदर आराधना की वीथिका है ...
आरोग्यम .



Nature cure means a change for the better in ones outlook on life itself. It means regulation of one's life in accordance with the laws of health. It is not a matter of taking free medicine from the hospital or for fees. A man who takes free treatment from the hospital accept charity. the man who accepts Nature cure never begs. Self help enhances respect. He takes step to cure himelf by eliminating poisons from the system and takes precautions against falling ill in future for this and balanced diet are necessary.

Today our villages produce enough vegetables, Fruits and milk. in the village as an essential part of the nature cure schemes. Time spent on this sould not be considered a waste. It is bound to benefit all the villages and ultimately the whole of India.
Mahatma Gandhi

आरोग्यम् की अनुकूलता - सेवा पथ पर विनम्र प्रयास

आरोग्यम केवल चिकित्सालय नहीं है बल्कि यह आपको आपका आरोग्य आपके हाथों सौपने का स्थल है। यह निरामय जीवन जीने की भावना दृढ़ बनाता है। यह तो निश्चित है कि यदि आहार, काम और आराम से संबंधित प्राकृतिक नियमों का पालन किया जाय तो मानव शरीर जो पंच तत्वों का मिश्रित एक पूर्ण यंत्र है, अपनी देखभाल स्वयं कर सकता है। सच है जब हम प्रमोदवश जानबूझकर प्रकृति के नियमों को तोड़ते हैं तब हमारे शरी में विजातीय द्रव्य उत्पन्न होते हैं, जिन्हें हमारा शरी बाहर निकालने की कोशिश करता है। शरीर की यह कोशिश रोग के रूप में जानी जाती है। यही रोग धीरे-धीरे असाध्य रोग बन जाता है और अंतिम साँसों तक असहनीय स्थिति तक पहुंच जाता है। रोग अपने विभिन्न लक्षणों के अनुसार अनेक नामों से जाने जाते हैं। प्राकृतिक नियमों के उल्लंघन का यदि हम मानव सुलभ प्राकृतिक उपचारों द्वारा निवारण करें तो हमें बिना किसी सहायता के रोगमुक्ति मिल सकती है। इसी ूमल चिंतन के साथ इस महत्ती सारीाूत आवश्यकता को मानवता की सेवा में उदारतापूर्वक यह आरोग्यधाम परिपूर्ण करने प्रस्तुत है।



लाखों वर्गफूट में फैले भू-भाग पर आरोग्यम् की आधारशिला प्रख्यात उद्योगपति एवं सेठ आणंद जी कल्याणजी पेढ़ी राष्ट्रीय संस्थान के पुण्यशाली गौरव पुरुष अध्यक्ष सेठ श्री रेणिक कस्तुरलाल भाई के कर कमलों द्वारा स्थापित हो चुकी है। संस्थान की सतत् जागरुक दृष्टि है कि आरोग्यम् केवल प्रचलित चिकित्सालयों की श्रृंखला में मात्र एक सामान्य चिकित्सालय न रह जाए। बहुआयामी उपचार प्रबंध व्यक्ति को पुनः रोगी नहीं बनने देने का स्वावलंबी आधार प्रदान करेगा।.

वृहत पैमाने पर आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण संपूर्ण प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली को विकसित करने की जा रही व्यापक तैयारी में तीर्थ परिसर के सामने धर्मशाला में 50 बिस्तरों वाला चिकित्सालय प्रारंभ है। मात्र चिकित्सालय नहीं है, यह जीवन का स्पंदन है, उत्साह की जीवंतता है, आत्मा संतुलित उपचार का साधन स्थल है, प्राकृतिक सुषमा में स्वस्थ्य शरीर मन एवं आराधना की समस्वरता है, पंच तत्वों को साधक बनाता है। बहुजन हिता-बहुजन सुखाय की सम्पूर्ण समर्पित भावना से साधक को जोड़ता है।

प्राकृतिक चिकित्सा - प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग सम्पूर्ण एवं समग्र चिकित्सा पद्धति है।

प्राकृतिक चिकित्सा-औषधरहित चिकित्सा पद्धति का विश्वास है कि मानव शरी मं रोग-निवारक व आरोग्यकर शक्तियाँ स्वाभाविक रूप से निहित हैं। वस्तुतः इंसान के शरी में अंतर्निहित आत्म-उपचारी शक्तियाँ स्वयं ही आरोग्यता व उपचार की दिशा में सक्रिय रहती हैं। वास्तव में प्राकृतिक चिकित्सक केवल अपेक्षित मार्गदर्शन सुलभ कराता है, जबकि रोगी द्वारा अपनाया जाने वाला आत्म-संयम, आहार-नियंऋण और व्यायाम उपचार की इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

गलत ढंग का और आवश्यकता से अधिक भोजन करने या पाचनक्रिया की शिथिलता के कारण शरीर में अपशिष्ट पदार्थों का जमा होने विभिन्न बीमारियों का एक प्रमुख कारण समझा जाता हैं उपवास और एनिमा की अपेक्षा अन्य अन्य किसी साधन से शरी में जमा होने वाले इन पदार्थों को अत्यंत प्रभावकारी ढंग से शरीर से बाहर नहीं निकाला जा सकता है। इंसान का शरी अत्यंत पेचीदा लेकिन कठोर मशीन जैसा है। प्राकृतिक, रोगनाशक एवं शरी वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के द्वारा शरीर की सफाई करके अधिकांश रोगों की चिकित्सा व इनका उपचार किया जा सकता है।



प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति की मान्यता है कि रोग पैदा करने वाले कीटाणु उसी स्थान पर पैदा होते हैं, जहाँ अपशिष्ट पदार्थ जमा हो जाते हैं। इसलिए कोई भी रोग तब तक शरीर को प्रभावित नहीं कर सकता, जब तक इसके कीटाणुओं के फलने-फूलने का आधार मौजूद न हो। शरी में अपशिष्ट पदार्थों का विजातीय हो जाती है और परिणामस्वरूप शरीर रोगग्रस्त हो जाता है।.

आइए, अब हम प्राकृतिक चिकित्सा की कार्य-प्रणाली का विश्लेषण करें। सबसे पहले इसमें रोग की जड़ पर ही ध्यान दिया जाता है और कटि स्नान, मिट्टी लपेट, पेट लपेट, एनिमा और गैस्ट्रो-हैपेटिक लपेट जैसे ठंउे परनी के उपचारों के साथ रोगों का उपचार किया जाता है (अधिकांश ठंडा उपचार पेट पर किया जाता है)। परजीवी (पैरासाइट) और अमीबा ठंड में बढ़ नहीं पाते, जबकि गर्मी इनके संवर्धन के लिए अनुकूल होती है। इसलिए ये नष्ट होने लगते हैं या धीरे-धीरे लेकिन लगातार कम होते चले जाते हैं। यहाँ तक कि सिस्ट भी नष्ट या खत्म हो जाते हैं। इस तरह परजीवियों का विकास और संवर्धन सीमित हो जाता है। ऊपर बताए गये उपचारों, उपवास व एनिमा के नियमित प्रयोग की मदद से 15 से 20 दिनों के भीतर सारे परजीवी मलाशय से होकर बाहर निकल जाते हैं। इसके बाद धीरे-धीरे रोगी को उसके सामान्य आहार पर लाया जाता है। रोगी को योगाभ्यास और व्यायाम करने चाहिए तथा सुबह-सबेरे तेज गति से घुमना चाहिए। ऐसा करने से उसे इस समस्या का पुनः सामना नहीं करना पड़ेगा।

योग-स्वस्थ जीवन पद्धति - प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग सम्पूर्ण एवं समग्र चिकित्सा पद्धति है।

प्राकृतिक चिकित्सा के साथ-साथ एक अन्य महत्वपूर्ण चिकित्सा विज्ञान है जो औषधरहित और प्राकृतिक है। लेकिन इसका कुछ पहलुओं को लोग सही ढंग से नहीं समझ पायें हैं और इसलिए इसकी गलत व्याख्या की जाती है। वैसे तो यह स्वयं उन अधिकांश रोगों का उपचार कर पाने में असमर्थ हैं, जिनका प्राकृतिक उपचार करने में सक्षम हैं, लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा के साथ मिल जाने पर ये दोनों एक दूसरे के पूरक हो जाते हैं। वास्तव में प्राकृतिक चिकित्सा ओर योग एक ही गाड़ी के दो पहियों के समान हैं और दानों का सम्मिलित अभ्यास करने पर चमत्कारी परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।

योग जीवन का पूर्ण विज्ञान है और प्राचीन पद्धति होने के बावजूद यह हाल ही में लोक प्रिय हुआ है। यह एक वैज्ञानिक अभ्यास पद्धति है और आधुनिक रहन सहन के दौरान पैदा होने वाले तनाव व अवसाद को दूर करने के लिए इसका आसानी से प्रयोग किया जा सकता है।



योग के अनेक रूप हैं, लेकिन यहाँ हमारा तात्पर्य केवल शारीरिक क्रियाओं से हैं।
नेती, कपालभारती, कुंजल, लघु शंख प्रक्षालन आदि जैसी यौगिक क्रियाएँ शरीर का शुद्धिकरण करने की प्रक्रियाएँ हैं, जो योगाभ्यास से पहले की जाती हैं और जिनसे शरीर में जमा विषैले पदार्थ को बाहर निकालने में मदद मिलती है। प्राकृतिक चिकित्सा शरी का उपचार करती है, जबकि योग इसके बाद शरीर का रख रखाव करता है। ये दोनों मिलकर व्यक्ति को जीवन भर रोगमुक्त बने रहने मे मदद करते हैं।.

आरोग्यम् नगपुरा जो श्री लब्धि-विक्रम-राज आरोग्यम संस्थान (पंजी.) द्वारा संचालित है। भारत शासन के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आयुष विभाग के केन्द्रीय योग एवं प्राकृतिक अनुसंधान परिषद (ब्ण्ब्ण्त्ण्ल्ण्छण्) नई दिल्ली द्वारा मान्य प्राकृतिक एवं योग उपचार केन्द्र है। छ.ग. प्राकृतिक योग विज्ञान संस्थान तथा सीएनए से सम्बद्ध हजारों स्वास्थ्य प्रेमियों का विश्वसनीय आरोग्यम् विगत पचास वर्षों से अत्यंत निष्ठाापूर्वक प्राकृतिक चिकित्सा, योग और आहार-प्रबंध के समन्वय से एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति का विकास करने के लिए व्यापक अनुसंधान कार्य कर रहा है, जिसमें दमा, मधुमेह, आर्थराइटिस, उच्च रक्तचाप और बालकों के शारीरिक विकास जैसे अनेक स्वास्थ्य परक विशेष रूप से शोधकार्य किया जा रहा है और इसके अत्यंत अच्छे परिणाम निकले हैं।