मर्दणम गुणवर्धणम् इस सूत्र से चित्त और शरीर में सौन्दर्य, प्रसन्नता, आरोग्य, दीर्घ जीवन, सेवा सत्कार्य, आदि गुणवर्धन का साधन है। मसाज (मालिश) या मर्दन क्रिया प्राचीन काल से ही सर्वत्र प्रचलित है। घर-घर की दैनिक चर्या में मालिश की पयोगिता बच्चे के जन्म के साथ ही स्थापित है। साथ ही रोग मुक्ति के लिए भी मसाज की उपयोगिता बनी हुई है। वस्तुतः मसाज एक अत्यंत सशक्त और अद्वितीय शारीरिक उपचार है। यह एक यौगिक क्रिया भी है। यह शरीर के अंगों को खोलती है और उन्हें सुघड़ बनाती है।
इससे मांशपेशियों में बसा हुआ तनाव दूर होता है शरीर के अंदर एकत्रित हुई कई विषैले तत्वों को बाहर कर दिया जाता है। जब तवचा पर विभिन्न तेलों के साथ या बगैर तेलों से गहरे तन्तुओं का मसाज किया जाता है तो शारीरिक संतुलन व कार्य क्षमता में वृद्धि होती है।
आरोग्यम् में सघन सूक्ष्मता पूर्वक मालिश ने साधकों को लाभान्वित किया है। विख्यात मसाज विशेषज्ञ एस. वी. गोविन्दन आरोग्यम् के उपचारकों की मसाज शैली एवं छत्तीसगढ़ की औषधीय पौधों (नगपुरा में) की गुणवत्ता से प्रभावित होकर कहते हैं - ‘‘आरोग्यम ने छत्तीसगढ़ के औषधीय पौधों का उपयोग कर मसाज के लाभों को बढ़ाया है। यह छत्तीसगढ़ीय मालिश अत्यंत सशक्त रूप से अंगों को खोलती है और सुदृढ़ बनाती है।