जलभावनाओ को पकड़ता है। जल की प्राणी मात्र के लिए बाह्य एवं आंतरिक उपयोगिता सर्वविदित है सम्य निर्मलता जल से ही संभव है। न केवल शरीर बल्कि अनादिकाल से आत्मा को घेरे हुए
काम, क्रोध, मोह आदि को समूल नष्ट करने की क्षमता लिए हुए हैं। आरोग्यधाम का वातावरण साधकों के लिए सहायक बनता है। समस्त शारीरिक एवं मानसिक विकारों के लिए उपयुक्त साधन जुटाने प्रस्तुत हैं।
जल द्वारा आंतो की सफाई
कटि स्नान
कमर वे पेडू की नाड़ियाँ सजीव होती है। पेडू के पास शरीर दाह को शांत करता है।
गुदा द्वार से आतों तक पेट के आंतरिक भाग की सफाई।
आधुनिक सोना-बाथ एक तरह से पुराने जमाने के टरकिश-स्नान गृह का प्रतिरूप हैं, एक विशेष तरह की लकड़ी के पट्टों से बनाये गये सोनाबाथ कक्ष दो से चार व्यक्तियों के उपयोग के लिए आरोग्यम में उपलब्ध हैं।
उपयोग अवधि: 20 मिनट
विधि: स्नान कक्ष में ज्यादा पानी पी सकें पी कर और ठंउे जन से नहा कर जाना जरुरी है। स्नान कक्ष में अपने शरीर की बाह्य त्वचा की समुचित मालिश करते रहना चाहिए। इससे त्वचा और रोम कूपों की सतह को न केवल विश्राम बल्कि वाष्प ग्रहण करने की शक्ति मिलती है। जब उष्मा की सीमा अधिक अथवा असहनीय लगने लगे, व्यक्ति को ठंउे पानी से नहा कर कक्ष में फिर लौटना चाहिए। दूसरी बार जब खूब पसीना आ जाये तब ठंडे पानी से दूसरी बार नहा कर शरीर को तुरंत सुखाना जरूरी है। इसके बाद 30 से 40 मिनट विश्राम करना चाहिए। एक ग्लास ठंडे नीबू के शर्बत का सेवन गुणकारी माना जाता है।
सावधानी: यदि नहाते वक्त चक्कर सा लगे तो स्नान प्रक्रिया रोक कर ठंडे पानी से नहाने के बाद 20 से 30 मिनट विश्राम करना चाहिए। सहज स्थिति में लाने के बाद उपचार जारी रखा जा सकता है।
उपयोग: इसे अनेक प्रकार की असाध्य एवं जटिल व्याधियों जैसे रयूमेटिसज्म, टाक्सेमिया, क्राॅनिक, डिस्पेपसिया (संग्रहणी) स्थूलता, साइटिका, लम्बगो और कटि-स्नायु विसंगतियों में प्रभावी माना जाता है।
विपरीत प्रभाव - यह सभी प्रकार के हृदय रोगियों, संक्रामक धर्म रोगों मधुमेह (इमेन्शियेसन युक्त) हाइपरटेशन ज्वर-पीड़ा और नेफ्राइटिस वालों के लिए वर्जित हैं।
आवश्यक: विशेष रुपसे निर्मित कक्ष जिसमें परफोरटेड ट/यूब (छिद्र युक्त नलिका) के द्वारा वाष्प-प्रवाहमान करने की व्यवस्था है।
अवधि: दस से बारह मिनट या तब तक जबकि बदन से समुचित मात्रा में पसीना न निकलने लग जाए।
विधि: उपयोग करने वाले को स्नान के पूर्व एक या दो ग्लास पानी पीनी चाहिए और साथ ही ठंडे पानी से नहा लेना चाहिए। वाश्प स्नान के तुरंत बाद ठंडे जल से पुनः स्नान और एक गिलास नीबू का ठडा शर्बत पीना स्फूर्ति दायक और लाभकारी होता है। इसके बाद 30 से 45 मिनट पूर्व विश्राम अवश्य करना चाहिए।
सावधानी: कई बार नहाते समय कुछ लोगों को चक्कर अथवा असहज होने की शिकायत हो सकती है। ऐसी स्थिति में नहाने वाले को तत्काल बाहर ले जाकर एक ग्लास ठंउे जल का सेवन करना चाहिए और उसके सिर को ठंडे पानी से धो देना चाहिए। जब तक सहज न लगे समुख्ति विश्राम करना चाहिए।
उपयोग: वाष्प कक्ष स्नान एक ऐसी प्रभावी प्रक्रिया है जिससे शरीर की त्वचा पर जमें विजातीय तत्व बाहर निकल जाते हैं - सहज कहें तो त्वचा की कब्जियत हटाने का प्रयोग समझना चाहिये। इसे आस्टो और ट्वमोइड आर्थिराइटिस (वात रोग) गठिया यूरिक एसिड जन्य कठिनाइयों और मोटापा घटाने के लिए उपयोगी माना जाता है। यह स्नायुयिक विकार जैसे साइटिका, चेहरे और रीढ़ स्नायु जनित समस्याओं के निदान में भी उपयोग की जाती है। इसे क्रानिक नेफराइटिस, माइग्रेन और मलेरियल न्यूरालाजिमा की चिकित्सा में भी प्रभावी पाया गया है।
विपरी प्रभाव: शारीरिक रूप से कमजोर लागों का वाष्प स्नान नहीं करना चाहिए। यह हृदय रोगियों (कार्डिक पेशेनट्स) उच्च रक्त चाप (हाई ब्लड प्रेशर) और बुखार पीड़ित लोगों के लिए वर्जित है।
जल उपचार के अंतर्गत जेट स्प्रे मसाज (ठंडा-गर्म) सर्कलर जेट स्प्रे मसाज, गर्म एवं ठंडा जल प्रवाह मंथन ;।ििनेपवदद्ध ठंडा फव्वारा, प्राकृतिक निमज्जन स्नान ;प्उउमतेपवद इंजीद्ध कूप भंवर स्नान, जल दबाव मसाज वाष्प स्नान आदि प्रबंध क्रमिक विकार पर है।